लुत्फ़ जो उसके इंतज़ार में है

July 30, 2005

लुत्फ़ जो उसके इंतज़ार में है
वो कहाँ मौसम-ए-बहार में है।

हुस्न जितना है गाहे-गाहे में
कब मुलाकात बार-बार में है।

जान-ओ-दिल से मैं हारता ही रहूँ
गर तेरी जीत मेंरी हार में है।

ज़िन्दगी भर की चाहतों का सिला
दिल में पैवस्त मू के ख़ार में है।

क्या हुआ गर खुशी नहीं बस में
मुसकुराना तो इख़्तियार में है।


पैवस्त = Absorb, Attach, Join
मू = Hair
ख़ार = A linen covering for a woman’s head, throat, and chin
इख़्तियार = Choice, Control, Influence, Option, Right


खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था

July 25, 2005

Lyricist: Farhat Sahzad
Singer: Mehdi Hasan

खुली जो आँख तो वो था न वो ज़माना था
दहकती आग थी तनहाई थी फ़साना था।

ग़मों ने बाँट लिया मुझे यूँ आपस में
कि जैसे मैं कोई लूटा हुआ ख़ज़ाना था।

ये क्या चंद ही क़दमों पे थक के बैठ गए
तुम्हें तो साथ मेरा दूर तक निभाना था।

मुझे जो मेरे लहू में डुबो के गुज़रा है
वो कोई ग़ैर नहीं यार एक पुराना था।

ख़ुद अपने हाथ से ‘शहज़ाद’ उसे काट दिया
कि जिस दरख़्त के तनहाई पे आशियाना था।


एक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा

July 24, 2005

Lyricist: Farhat Shahzad
Singer: Mehdi Hasan

एक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा
मैंने जो संग तराशा वो ख़ुदा हो बैठा।

उठ के मंज़िल ही अगर आए तो शायद कुछ हो
शौक-ए-मंज़िल तो मेरा आबलापा हो बैठा।

शुक्रिया ऐ मेरे क़ातिल ऐ मसीहा मेरे
ज़हर जो तूने दिया था वो दवा हो बैठा।

संग = Stone
आबलापा = Having Blistered Feet


खाकर ज़ख़्म दुआ दी हमने

July 19, 2005

Lyricist: Farhat Shahzad
Singer: Ghulam Ali

खाकर ज़ख़्म दुआ दी हमने
बस यूँ उम्र बिता दी हमने।

रात कुछ ऐसे दिल दुखता था
जैसे आस बुझा दी हमने।

सन्नाटे के शहर में तुझको
बे-आवाज़ सदा दी हमने।

होश जिसे कहती है दुनिया
वो दीवार गिरा दी हमने।

याद को तेरी टूट के चाहा
दिल को ख़ूब सज़ा दी हमने।

आ ‘शहज़ाद’ तुझे समझाएँ
क्यूँकर उम्र गँवा दी हमने।


भटका भटका फिरता हूँ

July 13, 2005

Lyricist: Farhat Shahzad
Singer: Ghulam Ali

भटका भटका फिरता हूँ
गोया सूना पत्ता हूँ।

साथ ज़माना है लेकिन
तनहा तनहा रहता हूँ।

धड़कन धड़कन ज़ख़्मी है
फिर भी हँसता रहता हूँ।

जब से तुमको देखा है
ख़्वाब ही देखा करता हूँ।

तुम पर हर्फ़ न आ जाए
दीवारों से डरता हूँ।

मुझपर तो खुल जा ‘शहज़ाद’
मैं तो तेरा अपना हूँ।

हर्फ़ = blame, censure, reproach, stigma


बका-ए-दिल के लिए ज्यों लहू ज़रूरी है

July 11, 2005

Lyricist: Farhat Shahzad
Singer: Ghulam Ali

दिल की बात ना मुँह तक लाकर अब तक हम दुख सहते हैं।
हमने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं।
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इलज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं।

बका-ए-दिल के लिए ज्यों लहू ज़रूरी है
इसी तरह मेरे जीवन में तू ज़रूरी है।

ये अक़्ल वाले नहीं अहल-ए-दिल समझते हैं
कि क्यों शराब से पहले वुज़ू ज़रूरी है।

ख़ुदा को मुँह भी दिखाना है एक दिन यारों
वफ़ा मिले ना मिले जुस्तजु ज़रूरी है।

कली उम्मीद की खिलती नहीं हर एक दिल में
हर एक दिल में मगर आरज़ू ज़रूरी है।

है एहतराम भी लाजिम कि ज़िक्र है उसका
जिगर का चाक भी होना रफ़ू ज़रूरी है।

बका = permanence, eternity, immortality
अहल-ए-दिल = Resident Of The Heart
वुज़ू = Ablution
जुस्तजु = Desire, Search
एहतराम = Respect
चाक = Slit, Torn
रफ़ू = Mending, Repair


ज़िन्दगी को उदास कर भी गया

July 3, 2005

Lyricist: Farhat Shahzad
Singer: Ghulam Ali

ज़िन्दगी को उदास कर भी गया
वो कि मौसम था एक गुज़र भी गया।

सारे हमदर्द बिछड़े जाते हैं
दिल को रोते ही थे जिगर भी गया।

ख़ैर मंज़िल तो हमको क्या मिलती
शौक-ए-मंज़िल में हमसफ़र भी गया।

मौत से हार मान ली आख़िर
चेहरा-ए-ज़िन्दगी उतर भी गया।


इससे पहले कि बात टल जाए

June 28, 2005

Lyricist: Farhat Shahzad
Singer: Ghulam Ali

इससे पहले कि बात टल जाए
आओ इक दौर और चल जाए।

आँसुओं से भरी हुई आँखें
रोशनी जिस तरह पिघल जाए।

दिल वो नादान, शोख बच्चा है
आग छूने से जो मचल जाए।

तुझको पाने की आस के सर से
जिन्दगी की रिदा ना ढल जाए।

वक़्त, मौसम, हवा का रुख जाना
कौन जाने कि कब बदल जाए।

रिदा = Cloak