Lyrics: Gulzar
Singer: I don’t think anyone has sung it. But I love this poem. So, posting it here for reference 🙂
ये कैसा इश्क है उर्दू ज़बां का
मज़ा घुलता है लफ्जों का ज़बां पर
कि जैसे पान में महंगा क़माम घुलता है
नशा आता है उर्दू बोलने में
गिलोरी की तरह हैं मुंह लगी सब इस्तिलाहें
लुत्फ़ देती हैं
हलक़ छूती है उर्दू तो
हलक़ से जैसे मय का घूँट उतरता है !
बड़ी एरिस्टोक्रेसी है ज़बां में
फ़कीरी में नवाबी का मज़ा देती है उर्दू
अगरचे मानी कम होते हैं और
अल्फाज़ की इफरात होती है
मगर फिर भी
बलंद आवाज़ पढ़िये तो
बहुत ही मोतबर लगती हैं बातें
कहीं कुछ दूर से कानों में पड़ती है अगर उर्दू
तो लगता है
कि दिन जाड़ों के हैं, खिड़की खुली है
धूप अन्दर आ रही है
अजब है ये ज़बां उर्दू
कभी यूँ ही सफ़र करते
अगर कोई मुसाफिर शेर पढ़ दे मीर-ओ-ग़ालिब का
वो चाहे अजनबी हो
यही लगता है वो मेरे वतन का है
बड़े शाइस्ता लहजे में किसी से उर्दू सुनकर
क्या नहीं लगता –
कि इक तहज़ीब की आवाज़ है उर्दू !